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केदारनाथ धाम को स्वर्णजड़ित बनाने का विरोध क्यों?,पढ़े पूरी खबर

दिनेश शास्त्री
देहरादून।
11वें ज्योतिर्लिंग भगवान केदारनाथ धाम के वैभव में श्रीवृद्धि को लेकर इन दिनों एक अनपेक्षित विवाद चर्चा का विषय बना हुआ है। भगवान आशुतोष तो जगत कल्याण के लिए अपनी समाधि में लीन हैं किंतु मानव है कि एक बार फिर समाधि भंग करने पर तुला है।
वर्ष 2013 की भीषण आपदा के बाद से धाम को एक बार फिर दिव्य और भव्य बनाने की कोशिश हो रही है और कदाचित भगवान भोले नाथ की प्रेरणा से ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केदारनाथ धाम को विश्व फलक पर लाने के लिए इसे अपने ड्रीम प्रोजेक्ट का हिस्सा बनाया है। इसी क्रम में महाराष्ट्र के एक श्रद्धालु ने बाबा केदार के गर्भगृह को स्वर्णमंडित करने का बीड़ा उठाया तो कुछ लोगों के पेट में दर्द हो गया और विरोध के स्वर मुखर हो गए।
तर्क दिया जा रहा है कि केदारनाथ मोक्ष धाम है और यहां सोना जड़ने का कोई औचित्य नहीं है।
आज से साढ़े पांच हजार पहले राजा परीक्षित के राजतिलक के साथ उनके राजमुकुट में कलियुग ने निवास बना लिया था, केदारनाथ में भी कलियुग आ जायेगा। मानों यहां तो सतयुग चल रहा है। उन लोगों को याद रखना चाहिए कि उसी केदारघाटी में स्वर्णाभूषण की परम्परा का आलम यह है कि विवाहिता महिलाओं के गले में आज भी आउट डेटेड हो चुकी अशर्फियों की माला देखी जा सकती है और यही अशर्फियां उन परिवारों की समृद्धि का द्योतक भी होती हैं, तो क्या वे कलियुग से दूर हैं या कलियुग से पीड़ित हैं, और उनकी दशा से द्रवित होकर ही बाबा केदार के गर्भगृह को स्वर्ण मंडित करने का विरोध करने की बाध्यता उत्पन्न हुई है।
मंदिरों का निर्माण, उन्हें वैभव संपन्न बनाना, आकर्षक बनाना एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। सन 1669 में औरंगजेब ने जब काशी के विश्वनाथ मंदिर का ध्वंस किया तो सबसे पहले कौन आगे आया था? याद है न! वह थी सनातन धर्म के प्रति समर्पित इंदौर की महारानी अहिल्या बाई होलकर।
महारानी अहिल्या बाई होलकर का संदर्भ मैं यहां विशेष कारणों से ले रहा हूं। उन्होंने अपने स्वर्णाभूषण बेच कर काशी, सोमनाथ के साथ ही अनेक मंदिरों का पुनर्निर्माण कराया था और उसके बाद पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने काशी विश्वनाथ मंदिर को सोने से मढ़ने के लिए सोना भिजवाया था। ध्यान रहे काशी भी ज्योतिर्लिंग ही है और सुगमता के कारण उसकी महत्ता किसी अन्य ज्योतिर्लिंग से कम नहीं हो सकती। दूसरे काशी तो विद्वानों की नगरी है, यह बाबा विश्वनाथ की कृपा ही है कि जब कभी शंकराचार्य जैसे पद के लिए विवाद की स्थिति आई है तो उसका निस्तारण काशी विद्वत परिषद ही करती आई है। उस विद्वत परिषद ने काशी के मंदिर को सोने से मढ़वाने का विरोध नहीं किया, तो फिर केदारनाथ में क्यों एक नई विद्वत परिषद खड़ी हो गई। इस सवाल को पूछा जा सकता है। ध्यान रहे किसी की विद्वता पर हमें न कोई संदेह है और न विरोध पर ही कोई आपत्ति है। हमें अपनी शंका के समाधान की अपेक्षा है और यह स्वाभाविक भी है।
बाबा केदार के गर्भगृह को स्वर्णजड़ित करने का विरोध करने के क्रम में एक सवाल यह उभरता है कि इसी गर्भगृह में पिछले कुछ सालों में जब चांदी से मढ़वाया जा रहा था तो क्या कलियुग नहीं आ रहा था। महाराजा परीक्षित के राजमुकुट में तो कलियुग को जगह देते वक्त यही कहा गया था कि सोने और चांदी में ही तुम्हारा वास होगा। माना जा सकता है कि तभी से स्वर्णमान की स्वीकारोक्ति हुई होगी। चांदी के वक्त चुप्पी और सोने के संदर्भ में विरोध यह समझ में न आने वाली बात है। हम यह क्यों भूलते हैं कि सोना हो या चांदी इन धातुओं से बाबा का कोई लेना देना नहीं है, यह तो श्रद्धालु की आस्था और विश्वास का मामला है। कोई श्रद्धालु अगर किसी मंदिर में सोना चांदी चढ़ाता है तो यह श्रीवृद्धि श्रद्धालुओं के लिए होती है। तिरुपति बालाजी में न जाने कितने भक्त सोना चांदी दान करते हैं, तो क्या कलियुग से वह तीर्थ अछूता है या उसे छूट है अथवा कलियुग के कारण ऐसा हो रहा है और केदारनाथ को कलियुग की छाया से मुक्त रखने का उपक्रम है?
अब एक ताजा बात करें। टिहरी नरेश महाराज प्रताप शाह का सन 1887 में असामयिक निधन हो गया था। राजकुमार कीर्ति शाह अवयस्क थे तो महारानी गुलेरिया ने राजकाज संभाला। उन्होंने सरकारी खजाने को खर्च करने के बजाय अपने निजी स्वर्णाभूषण बेच कर टिहरी में ठीक अहिल्याबाई होलकर की तरह बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगा जी आदि मंदिरों का निर्माण किया था। परिमाण की बात करें तो महारानी अहिल्याबाई होलकर का योगदान बहुत ज्यादा है। उन्होंने सोमनाथ से केदारनाथ तक हजारों मंदिरों का पुनर्निर्माण करवाया और खासकर केदार घाटी को परम वैभव प्रदान किया। अगस्तमुनि, ऊखीमठ, गुप्तकाशी के मंदिरों के परकोटे जिन्हे कोठा भवन कहा जाता है, उनकी ही देन हैं। जिन लोगों को यह जानकारी नहीं है, वे प्रसिद्ध इतिहासकार डा. शिवप्रसाद नैथानी की पुस्तक पढ़ सकते हैं। डॉ. यशवंत सिंह कटौच ने भी इस पर प्रकाश डाला है और पंडित हरिकृष्ण रतूड़ी ने भी।
डॉ. शिवप्रसाद नैथानी ने उत्तराखंड के इतिहास पर लिखी अपनी पुस्तक में विस्तार से लिखा है कि महारानी अहिल्याबाई होलकर ने इंदौर से निर्माण दल भेज कर छोटे बड़े सभी मंदिरों का जीर्णोद्धार किया। उनमें बसुकेदार का मंदिर हो या मद्महेश्वर का हो, शोणितपुर हो या त्रियुगीनारायण हो, हर मंदिर को वैभव संपन्न बनाने में उन्होंने अतुलनीय योगदान दिया। तुंगनाथ यात्रा मार्ग पर बनियाकुंड में उनकी बनाई धर्मशाला के खंडहर इस बात के साक्षी हैं, आज हम उनको संभाल नहीं पा रहे हैं तो यह नाकामी किसकी है? कितने लोग जानते हैं कि शोणितपुर में अनिरुद्ध कारागार का शिल्प महारानी अहिल्याबाई होलकर की ही देन है। आज वह किस हालत में है, क्या यह सब बताने की जरूरत है? जबकि संपन्नता में वहां के लोगों का पूरे इलाके में कोई सानी नहीं है। सवाल तो यह भी पूछा जा सकता है कि परम धर्मनिष्ठ स्व. अमर नाथ पोस्ती अगर अपने संसाधनों से मनकामनेश्वर मंदिर का निर्माण कर सकते थे तो किसी और ने अनिरुद्ध कारागार को भव्य बनाने में क्यों नहीं रुचि ली? हालांकि यह बात विषयांतर कही जा सकती है, किंतु वापस केदारनाथ धाम को दिव्य और भव्य बनाने से रोकने की जिद क्या उचित है? यह बात क्षेत्र के लोगों को सोचनी चाहिए। हां अगर यह बाबा की इच्छा है तो वह सिर आंखों पर है किंतु अगर कोई व्यक्ति अपनी ज़िद से रोकना चाहे तो यह देखना व्यवस्था का काम है। हम तो निष्पक्ष होकर यही कह सकते हैं कि बाबा सबको सन्मति दें, ताकि आपदा के कारण ध्वंस हुई केदार घाटी एक बार फिर परम वैभव के साथ देश दुनिया के सामने दिखे और इस घाटी के अर्थ तंत्र को अनंत ऊंचाइयां प्रदान हों।
श्री बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति के अध्यक्ष अजेंद्र अजय इस बात को लेकर चिंतित दिखे कि इस मामले में अनावश्यक विवाद खड़ा किया जा रहा है। उन्होंने भरोसा जताया कि जल्द मामले का हल निकल जायेगा। मंदिर समिति के कार्याधिकारी रमेश तिवाड़ी कहते हैं कि भगवान की प्रेरणा से अगर कोई भक्त बाबा के गर्भगृह को परम वैभव प्रदान कर रहा है तो उसका विरोध नहीं किया जाना चाहिए। पूर्व कार्याधिकारी अनिल शर्मा भी इसी तरह का मत व्यक्त करते हुए कहते हैं कि यह अनावश्यक विवाद है। मंदिर समिति के सदस्य तथा तीर्थ पुरोहित श्रीनिवास पोस्ती का कहना है कि बाबा के गर्भगृह में श्रीवृद्धि से क्षेत्र का ही भला होगा। वे मानते हैं कि केदारघाटी ही नहीं पूरे उत्तराखंड के अर्थ तंत्र की रीढ़ केदारनाथ धाम बनने जा रहा है। जिस पैमाने पर धाम के उत्थान और पुनर्निर्माण के कार्य चल रहे हैं, उसमें क्षेत्र के सुखद भविष्य के बीज निहित हैं। अगर कोई श्रद्धालु दान देना चाहता है तो उसे रोकने का कोई औचित्य नहीं है। लोगों को अपनी धारणा पर पुनर्विचार करना चाहिए तथा क्षेत्र के वृहद हित को ध्यान में रखना चाहिए। कलियुग के बहाने काम रोकने की कोशिश किसी के भी हित में नहीं है।
बताते चलें कि केदारनाथ मंदिर के गर्भगृह की दीवारों को चांदी से आवृत किया गया है। इन दिनों महाराष्ट्र के एक श्रद्धालु के दान से उसे सोने से आवृत्त करने के लिए काम करने हेतु कारीगर आए हैं। गुरुवार को जब यह काम चल रहा था तो कुछ लोगों ने धार्मिक आस्था, परम्परा, कलियुग, मोक्ष धाम आदि अनेक तर्कों के साथ काम रोकने की कोशिश की। निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार यह तमाम कार्य आगामी 24 अक्टूबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के केदारनाथ धाम आने से पूर्व पूरा होना है। लिहाजा काम निर्बाध गति से हो भी रहा है। अब यह तो नहीं कहा जा सकता कि काशी और सोमनाथ मंदिरों पर लगाया गया सोना धर्मविरुध है। सो संभवत राजनीति तथा कुछ अन्य कारणों से यह व्यवधान उत्पन्न हो रहा है। जानकर तो यह भी बता रहे हैं कि सत्तारूढ़ दल से जुड़े कुछ लोग भी अपने निहित कारणों से इस मामले को हवा दे रहे हैं, हालांकि इस आरोप की पुष्टि कोई नहीं कर रहा है, किंतु अंदरखाने इस तरह की बातें आमतौर पर होती रहती हैं। निष्कर्ष रूप में यही कहा जा सकता है कि जब यात्रा निर्बाध रूप से चल रही है और यात्रा व्यवसाय से जुड़ा हर वर्ग लाभान्वित हो रहा है तो क्या संवाद के बजाय व्यवधान उचित होगा? इसका फैसला हम संबंधित पक्षों पर ही छोड़ना उचित समझते हैं और सबसे बड़ी बात यह कि आखिर क्यों न बाबा केदार पर फैसला छोड़ दें कि उनकी इच्छा क्या है? लेकिन बाबा तो समाधि में लीन हैं। लिहाजा हम अपने सुधि पाठकों को ही क्यों न न्यायाधीश मान लें। ज्यादा बेहतर तो यही होगा।
चलते चलते एक बार फिर स्व. चारु चंद्र चंदोला की वह पंक्तियां याद आ रही हैं –
“देखते ही देखते गोरा आदमी चांद पर चढ़ आया
और मेरे देश में अभी बिल्ली ही रास्ता काट रही है।”
ये कलियुग की चिंता, धार्मिक परम्परा और अन्य तर्क कहीं बिल्ली के रास्ता काटने जैसी बातें तो नहीं हैं? फैसला आपको करना है।

टीम यमुनोत्री Express

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