बड़कोट/ अरविन्द थपलियाल।देशभर पीएम आवास योजना को अब सरकारी सिस्टम ने उलझा दिया है।
पीएम आवास योजना केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना है और अब अनाप शनाप दास्तावेज मांगने की वजह से सीधे साधे ग्रामीणों को सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटने पड़ रहे हैं।
एक तरफ देशभर में पेपरलेस सिस्टम चल रहा हे और दूसरी तरफ लाभार्थियों से आफलाईन दास्तावेज मा़गे जा रहे हैं।
मालूम हो कि इससे पहले इस योजना के लिए लाभार्थियों के मूल पहचान पत्र मांगे जा रहे थे लेकिन अब फार्मूला बिल्कुल बदल दिया गया जिससे वह दास्तावेज मांगे जा रहे हैं जिनका मूल रूप से इस योजना के अंतर्गत नहीं आंतें हैं।
लाभार्थी सवाल उठा रहे हैं कि मकान मायके में बनना है और रिपोर्ट ससुराल की मांगी जा रही जिससे अब उलझन बढ गई है।
सरकारी कर्मचारी दफ्तरों के चक्कर काट रहे हैं।
विकासखण्ड नौगांव की यदि बात करें तो आजकल सैकड़ों ग्रामीण बाजारों की तरफ निकल पड़े हैं और बैरगं घर लौट रहे हैं कहीं आधार सेटंर बंद है तो कहीं पटवारी चौकी पर नहीं और कहीं सिस्टम में तकनीकी खराबी।
ऐसे में अब केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी पीएम आवास योजना अब सवालों के घेरे में है वह इसलिए कि जब मूल कागज आनलाइन सर्वे में भेजे गये तो फिर से ऐसे कागज क्यों मांगें जा रहे हैं कि जिनका मूल आवेदन से कोई लेना देना नहीं है।
गांव के सीधे और भोले ग्रामीणों को विकासखण्ड स्तर के कर्मचारियों ने भ्रम में डाल दिया है।
आखिर शिविर लगाकर लोगों की समस्याओं का समाधान क्यों नहीं किया जा रहा है और वह सरकार का शासनादेश कहां है जिसपर यह तमाम जानकारियां हैं?
मामले पर कांग्रेस नेता रामप्रसाद सेमवाल ने सवाल उठायें हैं कि विभाग और सरकारी सिस्टम आम जनता के जेब काटने का काम कर रहा है और बिना किसी मानक के आम जनता को सड़क और सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटने को मजबूर किया है।
सेमवाल ने सरकार पर आरोप लगाया कि एक तरफ डिजिटल इंडिया और दूसरी तरफ जनता के जेब पर डाका जब पेपरलेस सिस्टम से आनलाईन पंजिकरण हो गया तो फिर फिजुल के दास्तावेज क्यों मांगे जा रहे हैं हांलांकि इस मामले पर अभितक प्रशासन की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई कि आखिर इसका शासनादेश क्या है?