ध्यान सिंह रावत ‘ध्यानी’
उत्तरकाशी
पत्र-पत्रिकाएं जहां जन-जन में जागृति लाने, विचारों का सही संप्रेषण का माध्यम हैं वहीं क्षेत्र विशेष से प्रकाशित
होने वाली पत्रिकाएं उस क्षेत्र के सामाजिक सरोकारों, विशेषताओं, रीतिरिवाजों को उजागर कर देश और दुनिया से रू-ब-रू करवाने का एक सशक्त माध्यम होती हैं। ‘कमलेश्वर महादेव महात्म्य’ पत्रिका का प्रकाशन उत्तरकाशी के रवांई क्षेत्र की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत की परिचायक है। पत्रिका के प्रकाशन के सम्बन्ध में बात करें तो विशिष्ट आलेखों, आकर्षक चित्रों से भरी ६६ पेजों की इस पत्रिका के संपादक सेवानिवृत शिक्षक चन्द्रभूषण बिजल्वाण जी के द्वारा किया गया है जो स्वयं लम्बे समय से लेखन से जुड़े रहे हैं। आपने समय-समय पर अपनी सीमा रेखा के
भीतर अनेकों समस्याओं, विविध विषयों पर पत्र-पत्रिकाओं में लेख लिख लिखकर रवांई की सांस्कृतिक विरासत को
आगे बढ़ाने का जो कार्य किया वह सदैव संस्मरण रहेगा। पत्रिका के संरक्षक डॉ० राधश्याम बिजल्वाण जी और डॉ०प्रहलाद रावत रवांई में डॉक्टरेट की उपाधि पाने वाले उन आरम्भिक शोधार्थियों में सुमार हैं जिन्होंने रवांई के एक प्रकार से मिट्टी में गाड़े समृद्ध खजाने को बाहर निकालने के लिए प्रयास किया है। उच्च शिक्षा में अध्यापन करने वाले और वर्तमान में महाविद्यालय के प्राध्यापक प्रोफेसर रूकम सिंह असवाल जी और रवांई की माटी में जन्में देश भर में साहित्यकारों की कतार में सुमार साहित्यकार महावीर रवांल्टा जी का मार्गदर्शन निःसन्देह पत्रिका की सफलता के लिए मील का पत्थर साबित होगा। पत्रिका में माननीय मुख्यमंत्री उत्तराखण्ड शासन, माननीय पर्यटन मंत्री,सतपाल महाराज जी, संत कमलनाथ जी, पूर्व विधायक और उपाध्यक्ष उत्तराखण्ड विकास परिषद मा० राजकुमार जी,मा० अध्यक्ष जिला पंचायत उत्तरकाशी, दीपक बिजल्वाण जी, माननीय विधायक पुरोला विधानसभा मा० दुर्गेश्वर लाल जी, भाजपा के जिला अध्यक्ष सतेन्द्र राणा जी आदि लोगों के प्रेरणाप्रद संदेशों ने पत्रिका की गरिमा में और निखार
ला दिया है। इस पत्रिका में कुल ५१ रचनाएं प्रकाश्ति हुई हैं जो विविध विषयों पर आधारित हैं। पत्रिका के संपादक चन्द्रभूषण बिजल्वाण जी ने जहां देव भूमि उत्तराखण्ड की संमृद्ध सांस्कृतिक परंपराओं और अनाधिकाल से कमलेश्वर महादेव मंदिर के महात्म्य को सुन्दर वर्णन के साथ उजागर किया है ।
वहीं पत्रिका में विशेष सहयोग देने वाले रचनाकारों के नामों का भी उल्लेख कर आभार प्रकट किया है। डॉ० राधेश्याम बिजलवाण जी ने ‘महादेवका’ के प्राचीन इतिहास को समेटते हुए मंदिर की परंपराओं स्थानीय ग्रामीणों के योगदान और मंदिर समितियों के समय-समय पर किये कार्यों के उल्लेख को भी व्यक्त किया गया है। पं० शांति प्रसाद बिजल्वाण जी की बात धर्मग्रन्थों व पुरानी लोक परंपराओं किंवदन्तियों और शिवलिंग की स्थापना कमलेश्वर मंदिर को तीन युगों से जोड़ने का शानदार वर्णन करते हुए एक विशिष्ठ महत्व प्रदान करती है। प्रख्यात कथा वक्ता श्री शिवप्रसाद नौटियाल जी ने केदारखण्ड ग्रन्थ और अनेकों पुरोणों के आख्यानों का जिक्र कर पांडवों के वनवास की कथा, केदारकांठा का महत्व और कमलेश्र में अद्वितीय शिवलिंग का सारगर्भित वर्णन को ‘गागर में सागर’ भरने जैसा लग रहा है। साहित्यकार दिनेश रावत ने रवांई की समृद्ध लोक विरासत का जिक कर रवांई को देशभर में मिली पहचान को न सिर्फ लोक में प्रचलित ‘अतिथि देवों भव’ के वाक्य का यूं ही बखान कर दिया अपितु अनेकों साहित्यकारों के साहित्य को आत्मसात कर अपने पुरखों की विरासत और भावपूर्ण आतिथ्य सत्कार की निराली परंपरा को न सिर्फ आंखों से देखा अपितु जिया भी है के उपरांत ही तो लिखा है- “हां! सच है कि रवांई में जावू है।”
लाजवाब बाल कथा वक्ता लोगों को अपनी कथा से सम्मोहित करने वाले पंडित आयुश कृष्ण नयन जी ने “कमलेश्वरं प्रभुवरं शरणं प्रपद्ये शीर्षक” लेख में भगवान भोलेनाथ के एक नाम कमलेश्वर की महिमा का अतुलनीय वर्णन किया है। व्याकरणाचार्य दिवाकर जोशी जी ने शिवत्व में भगवान शंकर की महिमा को अभिव्यक्त कर अपने आलेख में यहां के महात्म्य को एक नयी धार दी है। वरिष्ठ पत्रकार सुनील थपलियाल ने १६३० को तिलाड़ी के ढंढ़क की पृष्ठ भूमि रवांई के अग्रणी जननायकों के नेतृत्व, जन के आक्रोश के कारणों और उसके पश्चात की घटनाओं का जिक्र कर उन वीर क्रान्तिकरियों, शहीदों के नाम से दिये जाने वाले तिलाड़ी सम्मान तक का जिक्र कर डाला जो वाकई सही अर्थों में उन सपूतों को सच्ची श्रद्धांजलि के समान है। पत्रकार जय प्रकाश बहुगुणा ने यमुना उपत्यका के गंगाणी त्रिवेणी संगम के महत्व और महात्म्य को पौराणिक आख्यान में जा कर पत्रिका के माध्यम ये उजागर किया हैं। ध्यान सिंह रावत ‘ध्यानी’ ने अपने आलेख लेख में नौगांव विकास खण्ड के आखिरी गांव सरनौल की लोक विरासत को उजागर कर एक प्रकार से गांव-गांव के अतीत को खंगालने की ओर संकेत है। राकेश रतूड़ी जी का लेख युवाओं में बढ़ती नशे की प्रवृति जहां चिन्तनीय विषय वहीं इससे कैसे बचें और बचाएं युवा पीढ़ी को कैसे बचाएं दूरगामी सोच की ओर इशारा करता है। डॉ० राधेश्याम बिजल्वाण जी ने रवांई के प्रसिद्ध प्रकाश उत्सव पर्व ‘देवलांग’ को शिवलिंगोत्पत्ति का प्रतीक माना है। अजीत भण्डारी जी ने जिम्मेदार नागरिक तैयार करने में एक शिक्षक की निष्ठा पूर्ण जिम्मेदारियों का उचित निर्वहून, कलस्टर स्कूलों की प्रासंगिकता और बेहतर कार्य करने वाले विद्यालय के शिक्षकों की सराहना कर एक सुयोग्य अधिकारी के कर्तव्यों की ओर संकेत है। स्वयं पत्रिका के संपादक चन्द्र भूषण बिजल्वाण सच्चे मन से की गयी पूजा अर्चना के महात्म्य और पौराणिक आख्यान को अपने लेख के माध्यम से उजागर किया है। साथ ही पर्यटकों के लिए मानचित्र के माध्यम से मार्ग को भी वर्णित किया गया है। ‘शिवरात्रि रहस्य को लेकर राजेन्द्र बापू ने पुराणों में वर्णित कथा का सार रूप देकर शिवरात्रि का अर्थ प्रस्तुत किया है। पार्थ उनियाल जी ने ग्रामीण जीवन और जाने-माने पत्रकार प्रेम पंचोली ने कमल नदी को एक जीवन रेखा मानकर रामासेरांई घाटी की सांस्कृतिक समृद्धि को प्रस्तुत किया है। पूर्व डीआईजी एसपी चमोली जी ने यमुना और टॉस घाटी की अनुपम छटा को अपने ट्रेकिंग अभियान के दौरान के संस्मरण को बखूबी चित्रित किया है। डॉ० बृजेश सती ने पंच केदार के महात्म्य, चन्द्रभूषण बिजल्वाण जी द्वारा राजेश सेमवाल द्वारा युवाओं के भीतर देश भक्ति की भावना को जागृत कर सेना के लिए तैयार करने के भगीरथ प्रयास को उजागर किया है। श्रीमती कौशल्या बिजल्वाण का आलेख ‘रवांई टू गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड’ में क्वाड़ी गांव के कलाकार संदीप का सफ प्रशंसनीय है जो रवांई क्षेत्र के लिए एक गौरव की बात से कम नहीं। ध्रुवकुमार राठी ने कमलेश्वर तीर्थ की महिमा, डॉ० सुरेन्द्र मेहरा जी ने टिहरी नरेशों की कर व्यवस्था, उत्तराखण्ड के जाने माने साहित्यकार महावीर रवांल्टा जी का लेख ‘स्मृतियों का हिस्सा भर रह जाएंगी ये चीजें पढ़कर विलुप्ति की कगार पर इन दुर्लभ वस्तुओं की ओर पाठकों का ध्यान आकृष्ट किया है। श्रीमती ललीता नौटियाल का लेख कमलेश्वर की चमत्कारी घटना और वैदिक ऋषि कपिलमुनि की तप स्थली कमलेश्वर क्षेत्र पुरोला को पौराणिक काल की वैदिक भूमि की ओर इशारा है। लोकेश नौटियाल द्वारा शिकारू नाग देवता और गढ़पति बागा जैसांण का जिक्र शोधार्थियों को इस ओर कार्य करने की आवश्यकता है। स्वतन्त्र पत्रकार नीरज उत्तराखण्ड़ी जी ने विष्णु देव को हराकर महासू देवता का हनोल मंदिर पर कब्जा की कहानी अच्छी लगी। डॉ० आशाराम बिजल्वाण जी का शोधपरक लेख पशुचारकों का आराध्य देव समसू, सात समसू भाइयों का जिक्र और विभिन्न क्षेत्रों में उनको मानने पूजने तथा उनके नाम से लगने वाले मेलों का उल्लेख तथा समय के साथ नाम की व्याख्या कर देना एक प्रश्न चिह्न है। पत्रकार औंकार बहुगुणा जी का लेख देवलांग पर्व की मान्यता और उसे मनाने के कारणों को प्रस्तुत किया है। साथ ही डॉ० प्रहलाद रावत जी का लेख पुरोला में पुरातत्व विभाग द्वारा किया गया उत्तखनन जहां शोधार्थियों के लिए खोज का विषय है वहीं रवांई के प्राचीन अस्तित्व को भी वयां कर देता है। पत्रिका की खास बात है कि इसमें रवांई की लोक भाषा रवांल्टी कविता के रचनाकारों, श्री महावीर रवांल्टा,, अनोज सिंह बनाली, अनुरूपा ‘अनुश्री’ प्रदीप रावत ‘रवांल्टा’ भारती आनन्द, धीरेन्द्र चौहान, राजुली बत्रा, कुलवन्ती असवाल, विजय सिंह राणा, जगमोहन सिंह रावत द्वारा विविध विषयों में लिखी चुलबुली कविताएं, जहां व्यंग्यात्मक हैं वहीं रवांल्टी के गूढ़ शब्दों से भरी संदेश परक भी हैं। महावीर रवांल्टा के मार्गदर्शन में ये कवि दूरदर्शन देहरादून से भी समय-समय पर रवांल्टी कविताओं का वाचन कर चुके हैं। वहीं हिन्दी कविता में जय प्रकाश गैरोला, जयप्रकाश सेमवाल, अजीत भण्डारी, श्री खिलानन्द बिजल्वाण, शिविका शर्मा, ऋतम्बरा सेमवाल, दिवाकर दत्त जोशी, डॉ० राधेश्याम बिजल्वाण की कविताएं प्रशंसनीय हैं। पत्रिका में रवांल्टी को भरपूर स्थान मिला है जो पत्रिका को एक विशिष्ट महत्व प्रदान करती है। अन्त में एमय साक्ष्य के कम्प्यटूर टाइपिंग किशन सिंह चौहान और आवरण पृष्ठ डिजाइनर शशिमोहन रवांल्टा के प्रति संपादक विशेष आभार व्यक्त करते हैं।
टीम यमुनोत्री Express