उत्तरकाशी/ अरविन्द थपलियाल। एक तरफ प्रदेश में विकास के बड़े पैमाने की बात हो रही है और दूसरी ओर राज्य में सरकारों के प्रति उदासीनता का माहौल है। उदासीनता का माहौल सरकार के विपक्ष में तब सामने जब ग्रामीणों ने लोकसभा चुनाव बहिष्कार किया। टिहरी लोकसभा के उत्तरकाशी जिले में लगभग सात पोलिंग बूथों पर मूलभूत सुविधाओं को लेकर चुनाव बहिष्कार किया गया, जिसमें पुरोला विधानसभा के सबसे अधिक पांच बूथ और गंगोत्री विधानसभा के बूथ सामिल हैं जहां से पोलिंग पार्टियां बैरंग लौटी।
मालूम हो कि विधानसभा पुरोला के अंतर्गत लिवाड़ी ,बलाडी़,खांसी,मोरी का पोखरी,देवती और गंगोत्री विधानसभा के स्लाबा सहित दो पोलिंग बूथ सामिल हैं।
मतदान बहिष्कार करने वाले गांव में रहने वाले लोगों की कुल जनसंख्या 3,660हैं और कुल मतदाता 2226हैं तो यहां डीएलओ के अलवा किसी ने भी वोट नहीं दिया।
मतदान के बहिष्कार करने वाले ग्रामीण अपनी मूलभूत सुविधाओं की बात वर्षों से कर रहें हैं लेकिन सरकार की उदासीनता की वजह से यहां लोगों को लोकसभा चुनाव में मतदान का बहिष्कार करना पड़ा।
अब बड़ा सवाल यह है आखिर राज्य में सरकार के मतदान प्रतिशत 52/53प्रतिशत का होन क्या दर्शाता है? मतदान को लेकर चलाया गया जागरूकता अभियान सोशल मीडिया तक ही सीमित क्यों रह गया और यदि लोगों की समस्यायें थी भी तो समाधान के लिये ठोस रणनीति क्यों नहीं बनाई गई?
उत्तराखंड राज्य में लोकसभा चुनाव को लेकर ऐसे दर्जनों पोलिंग बूथ थे जहां अपनी समस्याओं को लेकर लोकसभा चुनाव का बहिष्कार किया गया।
यदि राज्य में मूलभूत सुविधाओं का अभाव नहीं होता तो नहीं तो पलायन होता और नहीं मतदाताओं में उदासीनता।