दिनेश शास्त्री
देश के 52 पूर्व नौकरशाह उत्तराखंड में सांप्रदायिक तनाव के चलते खासे दुबले।हुए जा रहे हैं। बड़ी मासूमियत के साथ उन्होंने प्रदेश के मुख्य सचिव और डीजीपी को एक खुला खत लिखा है। खत क्या है, यह एक तरह की टूल किट सी प्रतीत हो रही है, जैसे अवार्ड वापसी के समय सक्रिय हुई थी। उस गिरोह की ईमानदारी तब आपने भी देखी होगी कि अवार्ड तो वापस किया लेकर अवार्ड में मिली रकम डकार गए थे। किसी भी ईमानदार ने रकम को हाथ नहीं लगाया था। इस बार भी कुछ इसी तरह का संदेह हो रहा है। यह खत राजनीति की महक भी दर्शाता है। राजनीति की महक इसलिए कि पिछले पांच माह में चार दर्जन नाबालिग बेटियों को समुदाय विशेष के लोग भगा ले गए तो तब इन्हें कोई चिंता नहीं हुई, अब लोग सचेत होकर समाज को जागृत करने के लिए उठ खड़े हुए तो एक दो नहीं पूरे 52 पूर्व नौकरशाह खतो किताबत पर उतर आए हैं। इन्हीं लोगों से पूछा जाना चाहिए कि जब उत्तराखंड की बेटियों को फुसला कर, बहका कर भगाया जाता है तो इनके मुंह में दही क्यों जम जाती हैं। इनमें से दो चार ने उत्तराखंड में भी सेवाएं दी हैं, उन्हें तो नाबालिग बेटियों के अपहरण के किस्से याद होंगे।
इन साहिबान की चिंता है कि राज्य में महापंचायत जैसे आयोजनों से सांप्रदायिक स्थिति खराब हो सकती है, लिहाजा इस पर तत्काल कार्रवाई की जाए। अखिल भारतीय और केंद्रीय सेवाओं के पूर्व नागरिक सेवक रहे इस 52 पूर्व नौकरशाहों के समूह ने चिंता जाहिर की है। इन लोगों ने अपने सेवाकाल के दौरान कितना निष्पक्ष कार्य किया होगा, इनके इस एकतरफा खत से जाहिर हो जाता है। कहना चाहिए कि यह समूह एक तरह से दबाव की राजनीति पर उतर आया है। नौकरशाहों का यह समूह लिखता है कि 15 जून 2023 को पुरोला शहर में आयोजित किए जाने वाले महापंचायत और 20 जून 2023 को टिहरी में आयोजित होने वाली रैली और “चक्का जाम” कार्यक्रम, दोनों खुलेआम प्रदेश से मुसलमानों को निकालने के आह्वान के साथ जुड़े हुए हैं।
अनुरोध किया कि इन तार्किक, साम्प्रदायिक या धमकी भरे कार्यक्रमों को इन तारीखों या अन्यथा किसी भी तारीख पर नहीं होने दिया जाए। निसंदेह इनकी चिंता वाजिब है। नफरत के माहौल का हम भी समर्थन नहीं करते और संविधान ने जो स्वतंत्रता नागरिकों को दी हैं, उनका सम्मान किया जाना चाहिए किंतु सवाल फिर वही खड़ा होता है कि यह चिंता केवल दोषी के पक्ष में ही क्यों व्यक्त होती है? जिनकी बहन बेटी का अपहरण होता आया, उनके साथ क्यों आप खड़े नहीं दिखते? इससे आपकी न्यायप्रियता और निष्पक्षता पर सवाल तो उठता ही है। अपहरण जैसे मामले को पुलिस का विषय बता कर आप बच नहीं सकते। इस सच को नौकरशाह बखूबी जानते हैं।
बीते पांच माह में 48 नाबालिग बेटियों के अपहरण के मामले दर्ज हो चुके हैं और इन तमाम मामलों में आरोपी समुदाय विशेष के लोग हैं। पिछले साल भी करीब 79 मामले सामने आए थे। दोषियों को आज तक कड़ी सजा मिलते देखा नहीं गया। मतांतरण धर्मांतरण सब कुछ हो रहा, उस पर क्यों ये नौकरशाह मौन साधे हुए हैं। अब आपने अंगुली उठाई है तो बाकी तीन अंगुलियों का इशारा अपनी ओर भी देख लीजिए, फिर चिट्ठी पत्री पर आइए। इस तरह की एकतरफा बात करके आप देवभूमि के निर्दोष नागरिकों का मखौल नहीं उड़ा रहे हैं?
आप कह सकते हैं कि नाबालिग बेटियों के अपहरण का मामला पुलिस का है। तो साहब लोगो जवाब सुन लीजिए – पुलिस का इकबाल ही इतना बुलंद होता हो कोई भी उत्तराखंड की बेटियों के अपहरण से पहले सौ बार सोचता। पुलिस तो उनके लिए मित्र सिद्ध होती रही है। पुलिस की प्राथमिकता केवल किसी तरह लोगों को शांत रखने की रहती आई है। नजीबाबाद से पिछले दिनों गोमांस एक धार्मिक नगरी में पहुंच जाता है और पुलिस सिर्फ मामला शांत कर देती है, उस तरह की प्रवृत्ति देवभूमि में सिर कैसे उठा रही है, यह पुलिस के मित्रवत होने का प्रमाण नहीं है?
जिन बेटियों का आज तक अपहरण हुआ है, उनका धर्मांतरण भी हुआ, कितनों को सजा मिली? आप तो नौकरशाही में ही रहे हैं, है कोई जवाब आपके पास। निसंदेह आप निरुत्तर हैं और गिरोहबाजी के जरिए अपने उत्तराधिकारी नौकरशाहों को अपने मनमाफिक निर्णय लेने के लिए विवश करने की कोशिश ही कर रहे हो न जनाब! जरा उन बाप और भाइयों के दर्द के साथ खड़े होइए, आपको महसूस होगा कि शांत पहाड़ी के हृदय में कितना गुबार है, कितनी पीड़ा है और कितना दर्द है?
नफरत समाज में पैदा ही न हो, क्या इसका कोई फॉर्मूला है आपके पास? कोई नाबालिग बेटी बहकाई ही न जाए, क्या उन अपराधियों का हृदय परिवर्तन करने के लिए कोई प्रयास आपने किया? लिहाजा इस तरह की खतो किताबत से पहले तथ्य भी जान लीजिए। पुरोला के लोग सिरफिरे नहीं हो सकते। यह सामूहिक चेतना का प्रस्फुटिकरण है और इसके लिए पुलिस और प्रशासन दोषी है। यदि समय रहते कार्रवाई की नजीर पेश की होती तो लोगों को सड़क पर उतरने के लिए मजबूर नहीं होना पड़ता। वैसे भी आजकल चारधाम यात्रा का समय है। लोग कमाने में जुटे होने चाहिए थे लेकिन पुलिस और प्रशासन की नाकामी से उन्हें काम धंधा छोड़ कर पंचायत करनी पड़ रही है तो वजह भी आप ही हैं।
एक बात और, आज तक किसी सेकुलरवादी का कोई भी गिरोह उन बिलखते माता पिता के आंसू पोंछने आया हो, देखा नहीं गया, न वह उत्तराखंड अल्पसंख्यक मोर्चा के पदाधिकारियों ने ही इस तरह के अपराधों की निंदा की, जो आज प्रधानमंत्री से फरियाद करते हुए कह रहे हैं कि हम अपने समाज में भी बेगाने हो गए और भाजपा में भी। शर्म उनको भी नहीं आती, जिन्होंने आज तक इस तरह के कुकृत्यों की निंदा तक नहीं की। गिरोहबंदी के जरिए मूल समस्या से ध्यान भटकाने की कोशिश करने वालों की नाबालिग बेटी के साथ ऐसा हो जाता तो तब भी इसी तरह की चिट्ठी लिखते?
टीम यमुनोत्री Express