यमुनोत्री express ब्यूरो
देहरादून
चमोली जिले के हेलंग में पारंपरिक चरागाह से घास लेकर जा रही महिलाओं के साथ पुलिस और सीआईएसएफ की कार्रवाई के खिलाफ उत्तराखंड क्रांति दल ने कार्यवाही की मांग की है।
उत्तराखंड क्रांति दल ने इस मामले में कार्यवाही के लिए, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के साथ हीं मानवाधिकार आयोग और राज्य महिला आयोग को पत्र लिखकर कार्रवाई करने की मांग की है।
यूकेडी के केंद्रीय मीडिया प्रभारी शिव प्रसाद सेमवाल ने कहा कि एक ओर सरकार हरेला त्यौहार मना रही है और ठीक उसी मौके पर प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन बनाने की भी बात कहते हैं और दूसरी तरफ सीमांत जनपद की महिलाओं से घास तक छीन ली जा रही है।
यूकेडी नेता शिव प्रसाद सेमवाल ने कहा कि इस तरह की कार्यवाही से पलायन को बढ़ावा मिलेगा और लोग मजबूर होकर गांव छोड़कर शहरों की तरफ रुख करने लगेंगे।
उन्होंने कहा कि एक ओर सरकार विकास के नाम पर हजारों पेड़ बिना सोचे समझे काट देती है वहीं दूसरी तरफ ग्रामीण महिलाओं को उनके पारंपरिक हक हकूकों से भी वंचित किया जा रहा है।
यूकेडी नेता ने इन गांव वासियों को सीमांत प्रहरी होने की बात कहते हुए यह भी गिनाया कि कारगिल में घुसपैठ की सूचना वहां के चरवाहों ने ही दी थी। सीमांत पर रह रहे इन लोगों के साथ इस तरह का व्यवहार किया जाएगा तो यह लोग भी मजबूरन पहाड़ छोड़ देंगे।
यूकेडी ने चेतावनी दी कि यदि पहाड़ की महिलाओं के साथ इस तरह का व्यवहार जारी रहा तो फिर उत्तराखंड क्रांति दल इनके खिलाफ हक हकूक छीने जाने पर व्यापक विरोध प्रदर्शन करेगा।
पुलिस और सुरक्षाबलों के व्यवहार को निंदनीय बताते हुए उत्तराखंड क्रांति दल ने उनके खिलाफ कार्यवाही की मांग की है, साथ ही उनको ग्रामीणों के साथ व्यवहार की ट्रेनिंग दिए जाने की जरूरत बताई है।
यूकेडी नेता शिवप्रसाद सेमवाल ने कहा कि एक ओर सरकार घसियारी योजना चलाने की बात कहती है और वहीं दूसरी ओर महिलाओं से इस तरह से घास छीना जा रहा है।
यूकेडी नेता ने कहा कि मातृशक्ति का यह अपमान नहीं सहा जाएगा। उन्होंने कहा कि एक ओर पशुपालन ही एकमात्र जरिया बच चुका है, खेती-बाड़ी तो पहले ही बंदर और सूअरों की भेंट चढ़ गई है ऊपर से इस तरह का पुलिसिया दमन घोर आपत्तिजनक है।
यूकेडी नेता शिव प्रसाद सेमवाल ने कहा कि बाहर के लोग पहाड़ों में भी नदी नाले और जंगल कब्जा रहे हैं, जंगलों से लोग बहुमूल्य जड़ी बूटियां और कीमती पेड़ सहित जंगली जानवरों का शिकार कर रहे हैं। उनको तो कोई कुछ नहीं बोल रहा है लेकिन गांव वालों के परंपरागत हक हकूकों को इस तरह से छीना जा रहा है।
अरबों रुपए जंगल की आग में स्वाहा हो जाते हैं लेकिन जिम्मेदार लोगों पर कार्यवाही नहीं होती, वहीं घास काटने वालों के खिलाफ इस तरह की कार्यवाही और उनके खिलाफ चालान किया जाना घोर आपत्तिजनक है।
सेमवाल ने आक्रोश जताया कि एक ओर चीन सीमा के दूसरी तरफ गांव बसा रहा है और सीमांत के लोगों को हर तरह की सुविधाएं दे रहा है, वहीं दूसरी ओर इन महिलाओं के साथ इस तरह का व्यवहार सीमांत इलाकों को जन शून्य कर देगा। इस तरह के व्यवहार मे उत्तराखंड सरकार अंग्रेजों और मुगलों के दमनकाल से भी आगे निकल गई है।