दिनेश शास्त्री
देहरादून
हरक सिंह रावत हरकत में आएं और हलचल न हो, ऐसा संभव नहीं है। वैसे यह भी उतना ही सच है कि हरक सिंह ज्यादा देर तक शांत नहीं रह सकते और तालाब के ठहरे जल में पत्थर फेंक कर हिलोरें उत्पन्न करना उनका स्वभाव भी माना जा सकता है। सो विधानसभा चुनाव के बाद से हाशिए पर चल रहे हरक सिंह ने कल अपनी उपस्थिति का न सिर्फ अहसास कराया, बल्कि कांग्रेस की चिंता भी बढ़ा दी। खबर तो यह भी है कि इससे पहले हरक सिंह महाराष्ट्र के राज्यपाल और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री भगत दा से भी आशीर्वाद लेने गए थे। यह अलग बात है कि मीडिया में यह खबर ज्यादा चर्चा में नहीं आया लेकिन पर्दे के पीछे होने वाली घटनाएं कई बार दूरगामी नतीजे वाली भी होती हैं।
बहरहाल पूर्व नेता प्रतिपक्ष और पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रीतम सिंह और वर्तमान उप नेता प्रतिपक्ष भुवन कापड़ी के साथ लालचंद शर्मा, पूर्व विधायक राजकुमार और विजयपाल सजवान जैसे नेताओं को घर बुला कर हरक सिंह ने एक साथ कई संदेश दे दिए।
हरक सिंह के विरुद्ध आजकल जीएमवीएन के पूर्व उपाध्यक्ष रघुनाथ चौहान ने कई गंभीर आरोप लगाए हैं। उनके आरोपों की जांच होगी या नहीं, कोई कुछ कह नहीं सकता। इतना तो कहा जा सकता है कि कागज़ पत्तर के मामले में हरक सिंह पक्का काम करके चलते हैं और अगर जांच हो भी जाए तो हरक सिंह शायद ही फंसे। लेकिन हरक के घर पर हुए मंथन को यूं ही खारिज नहीं किया जा सकता। इससे तत्काल कोई नतीजा न दिखे लेकिन निकट भविष्य में जरूर कुछ नया घटता हुआ आप और हम देख सकते हैं।
हरक सिंह ने तालाब में पत्थर फेंक कर न सिर्फ अपने होने का अहसास कराया है, बल्कि अपने तेवर भी जाहिर कर दिए हैं। कुछ लोग दूर की कौड़ी ला रहे हैं कि हरक सिंह आम आदमी पार्टी को ताकत दे सकते हैं, किंतु सवाल यह है कि क्या हरक सिंह अगले पांच साल तक इंतजार कर सकते हैं। यह बात तो आईने की तरह साफ है कि हरक सिंह जो कुछ भी फैसला लेते हैं, उसका उन्हें तत्काल नतीजा चाहिए होता है। वे बहुत ज्यादा ठंडा करके खाने में यकीन नहीं रखते। इस हिसाब से आम आदमी पार्टी का जोखिम शायद ही हरक सिंह उठाएं। अब रही बात कांग्रेस की। कांग्रेस में माहौल फिलहाल उनके अनुकूल दिख नहीं रहा है। यह अलग बात है कि हरक सिंह अपने लिए जगह बनाना जानते हैं। यह तो समय का फेर है कि बहू के लैंसडाउन का चुनाव हारने के कारण उनकी जगह कुछ कम हुई है क्योंकि हरक सिंह की यह अपने राजनीतिक जीवन की सबसे बड़ी हार रही है और इसी कारण वे चार माह से खामोश भी थे।
हरक सिंह कांग्रेस के वर्तमान नेतृत्व से भी संतुष्ट नजर नहीं आते, लेकिन उनके निशाने पर हरदा हैं। उनकी यह टिप्पणी मायने रखती है कि राजनीति में टोने टोटके नहीं होने चाहिए, बेशक उनके शब्द कुछ और रहे हों लेकिन हरदा को वे बख्शने के मूड में नहीं दिख रहे हैं। आपको याद होगा 2016 की भगदड़ या बगावत कह दीजिए, उसके बाद हरक सिंह के विरुद्ध हरदा ने न सिर्फ जांच बिठाई थी, बल्कि खुद जाकर उनके दफ्तर में ताला तक लगवा दिया था। हरक सिंह की पीड़ा भी शायद यही हो सकती है। राजनीति में कई बार आगे बढ़ जाने के बाद भी अतीत की कुछ घटनाएं ऐसी होती हैं, जिन्हें चाह कर भी भुलाया नहीं जाता और जब मौका हाथ लगता है, हिसाब बराबर करने में संकोच नहीं होता। बहुत कम लोग ही शायद बड़ा दिल दिखा पाते होंगे।
बहरहाल हरक सिंह के ताजा तेवर चौकाने वाले बेशक न दिखें लेकिन यह मामला जल्दी शांत होने वाला नहीं है। अब देखना यह होगा कि दूसरी तरफ से प्रतिक्रिया क्या आती है। जो भी हो लेकिन इतना तय है कि आने वाले कुछ दिनों तक प्रदेश की राजनीति पढ़ने की कोशिश करने वालों को मसाला मिल गया है। हर कोई अपने नजरिए से इस घटनाक्रम का विश्लेषण करेगा। आप भी देखते रहिए, बहुत कुछ सामने आने वाला है।