दिनेश शास्त्री
देहरादून।
उत्तराखंड में चारधाम यात्रा चरम पर है। कोरोना के दो साल यानी एक काला अध्याय खत्म होने के बाद देश के विभिन्न भागों से श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ रहा है। खासकर केदारनाथ धाम में तो भीड़ इस कदर है कि दर्शनों के लिए लंबी लाइन लग रही है। आंकड़ों पर नजर डालें तो अभी तक 7,67,234 श्रद्धालु चारधाम के दर्शन कर चुके हैं लेकिन इसके विपरीत सरकार के इन्तजाम न सिर्फ लचर हैं, बल्कि नाकाफी भी हैं। यात्रा शुरू होने से पहले खूब गाल बजाने वाला सरकारी तन्त्र आज लाचार है। खासकर स्वास्थ्य सेवा के पैमाने पर जो लाचारी नजर आ रही है, वह अफसोस के सिवा कुछ नहीं देती। प्रमाण यह है कि मात्र एक पखवाड़े की यात्रा में अब तक 56 लोग बेमौत मारे जा चुके हैं।
देवभुमि उत्तराखंड के लिये यह अफसोसजनक बात है कि स्थापना के दो दशक बाद भी हम सन्तोषजनक स्वास्थ्य सेवाये उपलब्ध कत पाने में नाकाम रहे हैं। कोई काबिल चिकित्सक पहाड़ में रहने के लिये तैयार नहीं है।
जरा याद कीजिये अतीत को। उत्तर प्रदेश के जमाने में पहली नियुक्ति के सरकारी कर्मचारी पहाड़ आते थे, या प्रमोशन अथवा पनिशमेंट वाले पहाड़ आते थे। अब देहरादून, हल्द्वानी कार्मिकों का लक्ष्य है। बस इतना ही बदला है। वरना जो 56 यात्री 21 मई तक अकाल काल के गाल में समाये हैं, उनको बचाया जा सकता था।
आप अन्दाजा लगा सकते हैं कि जब यह् हाल यात्रा व्यवस्था का है तो सामान्य जनता का क्या हाल होगा। आये दिन खबर मिलती है कि अमुक जगह एम्बुलेंस सेवा के अभाव में मरीज ने दम तोड़ दिया या फिर प्रसूता की मौत हो गई। या फिर आये दिन अस्पतालों के लापरवाही के आरोप अथवा इलाज न मिल पाने की शिकायते आम हैं। फिर भी इस देवभूमि के लोग अपने सुख से ऊपर अतिथि की सेवा को तरजीह देते हैं। बात वही है – अपने तो जैसे तैसे दिन गुजर जायेगे, अतिथि को तकलीफ नहीं होनी चाहिये। पता नहीं सरकार इस बारे में क्या सोचती है। फिर भी 56 श्रधालुओं काअसमय चले जाना दुखद तो है ही।
टीम यमुनोत्री Express