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उत्तरकाशी में राज्य का सबसे पहला लगा था प्लांट- पिरुल से बिजली, कोयला निर्माण और बायलर के ईंधन के रूप में इसके उपयोग ,पढ़े पूरी खबर

उत्तरकाशी।
वनों में आग के फैलाव का बड़ा कारण बनने वाली चीड़ की पत्तियां (पिरुल) अब बिजली उत्पादन का बड़ा जरिया बन रही हैं। उत्तरकाशी जनपद के डुंडा ब्लॉक के चकोन धनारी क्षेत्र में गंगाड़ी पाइन नीडल पॉवर प्लांट बेहतर कार्य के साथ विधुत उत्पादन करने की मिशाल कायम किये हुए है।

मालूम हो कि वनों में आग के फैलाव का बड़ा कारण बनने वाली चीड़ की पत्तियां (पिरुल) अब बिजली उत्पादन का बड़ा जरिया बन रही हैं। उत्तरकाशी में इससे सफलतापूर्वक बिजली बनाई जा रही है। प्रदेश में पिरुल से विद्युत के उत्पादन के लिए निजी उद्यमियों में उत्तरकाशी के गंगाड़ी परिवार ने एक सयंत्र स्थापित किया हुआ हैं साथ ही पिरूल से पैलेट्स एवँ बिरकेट का उत्पादन शुरू किया जा रहा है।
समाजसेवी महादेव सिंह गंगाड़ी ने बताया कि उत्तराखंड का ये पहला पिरूल प्लांट है जो 25 किलो वाट बिजली उत्पादन कर रहा है इसी के साथ अब पिरूल से पैलेट्स एवँ बिरकेट का उत्पादन शुरू कर दिया है। उन्होंने बताया कि डुंडा ब्लॉक के 20 विद्यालयों में एमडीएम में भोजन बनाने में पिरूल से पैलेट्स एवँ बिरकेट का प्रयोग किया गया जो सफल रहा। इसमें भोजन बनाने में प्रति बच्चा 50 पैसे से भी कम खर्चा आया। और विद्यालयों द्वारा इसकी पुष्टि करते प्रमाण पत्र भी दिया गया जो एमडीएम में कम खर्चे में भोजन तैयार करने की उम्दा पहल भी है। श्री गगाडी ने बताया कि उत्तराखंड के लिए चीड़ का पिरूल अभिशाप नही बल्कि वरदान है , जरूरत है कि इसका बेहतरी से सद्पयोग किया जाय।
जानकारों के अनुसार
चीड़ से निकलने वाले पिरूल अम्लीय गुण होने के कारण इसे भूमि के लिए बेहतर नहीं माना जाता। साथ ही चीड़ वनों में पिरुल की परत बिछी होने के कारण वहां बारिश का पानी जमीन में नहीं समा पाता। इस सबको देखते हुए सरकार ने पिरुल का व्यावसायिक उपयोग करने का निर्णय लिया, जिससे पिरुल को जंगल से हटाया जा सके और यह आर्थिकी को बढ़ाने में भी योगदान दे। इस क्रम में पिरुल से बिजली, कोयला निर्माण और बायलर के ईंधन के रूप में इसके उपयोग की इकाइयां स्थापित होने का ये जीता जागता उदाहरण है।

टीम यमुनोत्री Express

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