सुनील थपलियाल।
बड़कोट। शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले वतन पर मिटने वालों का यही बाकी निशा होगा उक्त पंक्तियां राजशाही के क्रूर दमन चक्र के खिलाफ लोहा लेते हुए तिलाड़ी कांड के वीरों की शहादत को स्मरण करने के लिए अक्षरश: सत्य है ।
30 मई 1930 को हुए तिलाड़ी कांड में 17 किसान शहीद हुए थे और सैकड़ों घायल हो गए थे बाद में 68 किसानों पर मुकदमे चले और उन्हें 1 से 20 साल तक कारावास की सजा हुई जहां देश 1947 को स्वतंत्र हो गया था वही टिहरी रियासत का सामंती दमन चक्र 1949 तक जारी रहा। राजशाही के समय टिहरी रियासत की जनता करों के बोझ से दबी हुई थी इनमें औताली, गयाली, मुयाली ,नजराना, दाखिल खारिज ,देण खेण,( राज दरबार के मांगलिक कार्यों पर) आढ़त, पौणटोटी ,निर्यात कर, चील भर (भांग, सुरफ़ा, अफीम पर )आबकारी, डोमकर, रैका भवन, गंगाजल बिक्री कर, दास दासियो का विक्रय कर( हरिद्वार में ₹10 से ₹150 तक में दास बेचे जाते थे) आदि कर शामिल थे। राजघराने के घोड़े खच्चर, गाय भैंसों के लिए हर वर्ष प्रति परिवार एक बोझ घास, चार पाथा चावल, 2 पाथा गेहूं ,एक सेरा घी , एक बकरा टिहरी में राज महल को दिया जाता था और ना देने वाला दंड का भागी होता था।
1930 में राजा ने जंगलों में मुन्नार बंदी का कार्य शुरू करवाया इससे किसानों की गायों के चरान चुगान के स्थान तक छीन लिए गए। प्रार्थना करने पर जंगल के अधिकारियों ने उस समय कहा कि गाय बछियों के लिए सरकार नुकसान नहीं उठाएगी। उन्हे पहाड़ी से नीचे गिरा दो, यह शब्द आम आदमी व किसानों को मन्थने के लिए काफी थे ।उन दिनों नरेंद्र नगर में गवर्नर हेली अस्पताल की नींव रखी जानी थी। रवांई जौनपुर के लोगों को भी हुकूमत के ठेकेदारों ने अपने मनोरंजन के लिए नंगे होकर तालाब में कूदने के हुक्म दिये। गरीब जनता पानी में कूदी जरूर पर बाहर निकली तो मन में विद्रोह की ज्वाला लेकर।
रवांई जौनपुर के किसान धीरे धीरे संगठित होने लगे। क्षेत्र की एक पंचायत बनाई गई। बैठक के लिए चांदी डोगरी तिलाड़ी स्थान नियत किए गए।
20 मई 1930 को आंदोलन के प्रमुख नेता दयाराम, रूद्र सिंह कंसेरु, रामप्रसाद और जमन सिंह को गिरफ्तार कर मजिस्ट्रेट ने जंगलात अधिकारी (डीएफओ) पदम दत्त रतूड़ी के साथ टिहरी रवाना कर दिया। उधर पीछे-पीछे अपने नेताओं का पता लगाने के लिए किसानों का एक जत्था आया। डीएफओ पदम दत्त ने निहत्थे किसानों पर रिवाल्वर से डंडाल गाँव के पास फायर कर दिया। जिससे 2 किसान घटनास्थल पर शहीद हो गए। कुछ घायल हुए और मजिस्ट्रेट को भी गोली लग गयी, इन हत्याओं को देखकर पदम दत्तू भाग खड़ा हुआ पर किसानों की टोली घायलों को लेकर मजिस्ट्रेट सहित राज महल पहुंची। हत्याकांड का किस्सा सुनकर पुलिस वालों के होश उड़ गए और उन्होंने गिरफ्तार लोगों को छोड़ दिया। उधर पंचायत के समस्त राज कर्मचारियों को किसानों ने बंदी बनाने का निश्चय किया। ऐसी हालात में कुछ कर्मचारी भागे और उन्होंने रवांई जौनपुर की घटनाओं को बढ़ा चढ़ा कर चक्रधर जुयाल को सुनाया । दीवान जुयाल ने पदम दत्त की पीठ थपथपाई और फौज लेकर रवांई पर हमला करने को कहा। फौज आने की स्थिति पर विचार करने के लिए पंचायत की एक आम सभा तिलाड़ी मैदान में बुलाई गई। अगली सुबह फौज ने तिलाड़ी में मैदान को तीन तरफ से घेर लिया। दीवान चक्रधर जुयाल ने गोली चलाने का आदेश दे दिया। तीनों और से गोलियां चलते देख कुछ किसान पेड़ों पर चढ़ गए कुछ किसान जान बचाने के लिए चौड़ी तरफ बह रही यमुना नदी में कूद पड़े। उस दिन यानी 30 मई 1930 को 17 किसान शहीद हुए और सैकड़ों घायल हो गए । अगले दिन से सैनिकों ने गांव गांव जाकर बागी किसानों को तलाशना शुरू कर दिया और उन लोगों को टिहरी ले गए ।भोले-भाले किसानों पर मुकदमे चले । बेकसूर किसानों को बाहर से वकील लाने की इजाजत नहीं थी।
68 किसानों पर मुकदमे चले और 1931 में सभी को 1 से 20 साल तक कारावास हुआ ।
15 किसान कष्ट सहते सहते जेल में ही मर गए । इन आंदोलनों के प्रमुख नेताओं में दयाराम कंसेरु, भून सिंह व हीरा सिंह नगाणगांव ,लुदर सिंह ,जमन सिंह, दलपति ग्राम बड़कोट गाँव, दलबू ग्राम भंसाड़ी, धूम सिंह ग्राम चक्र गांव ,राम प्रसाद ग्राम खरादी व बैजराम ग्राम ख़ूबन्डी शामिल थे।
इन शहीदों की कुर्बानी ने धीरे-धीरे संपूर्ण रियासत में क्रांतिकारियों को शोषण से मुक्ति की राह दिखाई और श्री देव सुमन जैसे क्रांतिकारी आगे आए और राजतंत्री का अंत हुआ। इस तरह से प्रत्येक साल 30 मई को शहीदों के नाम पर श्रद्धांजलि देने के लिए तिलाड़ी बड़कोट में शहीद मेला लगता है और सैकड़ों लोग आज भी यहां आकर शहीदों को नमन करते हुए श्रद्धांजलि देते हैं।
टीम यमुनोत्री Express