जयप्रकाश बहुगुणा
उत्तरकाशी
अपर यमुना वन प्रभाग बड़कोट की मुंगरसन्ति रेंज में इन दिनों विलुप्ति की कगार पर पहुंचे गिध्दों का एक झुंड दिखाई दे रहा है, जिससे पर्यावरण व पक्षी प्रेमी उत्साहित हैं।सौ से अधिक गिद्ध एक साथ बहुत समय बाद इस क्षेत्र में उड़ान भरते दिखाई दिए हैं।मुंगरसन्ति रेंज के वन क्षेत्राधिकारी शेखर राणा ने उक्त सम्बन्ध में जानकारी देते हुए बताया कि रेंज के भाटिया अनुभाग में गिध्दों का यह झुंड दिखाई दिया है, जो यहाँ के स्वस्थ पर्यावरण संतुलन को प्रदर्शित करता है।उन्होंने कहा कि जब वे जंगल में वन बीटों के भ्रमण पर थे तो उनकी टीम को यह झुंड कई बार उड़ान भरते व पेड़ो पर बैठे नजर आया।राणा ने कहा कि गिद्ध प्रकृति के सफाई नायक हैं, यदि इनका अस्तित्व खत्म होगा तो पर्यावरण असन्तुलन होगा।जिसका सीधा प्रभाव मानव जीवन पर पड़ेगा।मुंगरसन्ति रेंज के वन क्षेत्राधिकारी शेखर राणा ने गिद्धों की मौत के कारणों पर जानकारी देते हुए बताया कि गिद्धों की आबादी का लगभग सफाया होने का प्रमुख कारण डाइक्लोफेनाक दवा थी। यह मवेशियों के शव में पाया गया था जिस पर गिद्ध भोजन करते हैं।
आमतौर पर यह दवा मवेशियों को सूजन / दर्द के इलाज के लिए दी जाती थी। भारत सरकार द्वारा 2008 में इसके पशु चिकित्सा उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। डिक्लोफेनाक के जैव संचय (पदार्थों का क्रमिक संचय, जैसे कि कीटनाशक, या किसी जीव में अन्य रसायन) गिद्धों में गुर्दे की विफलता का कारण बने, जिससे मृत्यु हो गई। गिद्धों के लिए डाइक्लोफेनाक खतरनाक रूप से घातक है। शव में इसका 1% भी गिद्ध को ऐसे शव को खिलाने के बाद थोड़े समय में मार देगा।
कुछ स्थानीय आवारा जानवरों / जंगली जानवरों को मारने के लिए ज़हरीले पदार्थ को मृत पशु के शव मे डाला जाता है । गिद्धों द्वारा उनका भोजन करना भी उनकी मृत्यु का एक महत्वपूर्ण कारण बन गया। राणा ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण में प्रत्येक पशु -पक्षियों की अपनी महत्वपूर्ण भूमिका है, मानव समाज को उन गतिविधियों पर अंकुश लगाने की जरूरत है जिनसे इन जीवों पर प्रतिकूल असर पड़ता है।