देहरादून से राकेश रतूडी
जनपद चमोली के सेरागड़ निवासी सुभाष रतूड़ी ने अपनी पढ़ाई के बाद होटल मैनेजमेंट किया।पहाड़ों में नौकरी न मिलने पर वे देश के कई राज्यों जयपुर, दिल्ली ,बैंगलोर,केरल, मध्यप्रदेश के कई नामी होटलों में नौकरी की।कई सालों बाद वे विदेश चले गये।विदेश में सेफ का काम किया ।समय बीतता गया ,लेकिन जब कोरना काल आया तो वे अपने घर लौट आए।घर पर रह कर वे बेरोजगारी से काफी परेशान थे।उन्हें अपने उत्तराखंड की भूमि पर पैदा मडुवे पर कुछ नया करने की सोची ।आज हर शहर व छोटे बाजारों में फस्ट फूड का बहुत ज्यादा प्रचलन है।उन्होंने मडुवे से फास्ट फूड बनाने शुरू किये ।मडुवे के मोमो,बर्गर, रोल,पावभाजी, बनानी शुरू की।जिसे लोग देहरादून में बहुत पसन्द कर रहे हैं।लेकिन सुभाष रतूडी ने कुछ नया करने की सोची।सुभाष ने मंडुवे की चाय,कौफी, लस्सी बनानी शुरू की तो लोग आश्चर्यचकित हो गए कि मंडुवे की चाय ,कौफी, सुभाष का होटल सर्वेचौक के पास है जहां लोगों भी भीड़ लगी रहती है।हर एक कि जुवा पर एक ही सवाल की जिस मंडुवे को लोग मोटे अनाज कहकर पशुओं के लिए प्रयोग करते थे उसके अंदर ऐसे लाभकारी गुण।आज सुभाष युवाओं के लिए एक मिसाल बने हुए हैं।उनका कहना है कि सरकार केवल कहती है लेकिन धरातल पर कुछ नही होता।हर राज्य में लोकल खाने को परोसा जाता है लेकिन हमारे राज्य में अभी तक हम बाहर से आये टूरिस्टों को अपना गढ़वाली भोज नही खिला पाते।जबकि टूरिस्ट चाहता है । चाय, कौफी पीने के लिए बाहरी राज्यों के लोग बहुत पसंद कर रहे हैं।जब उनसे सरकारी मदद के लिए पूछा गया तो वे कहने लगे कि केवल सरकार दिखावे के सिवाय कुछ नहीं करती।आज तक सरकार का एक भी नुमाइन्दा यहाँ नहीं आया।आपको बता दें कि देहरादून में मंडवे का आटा 60 रुपये प्रति किलो बिक रहा है। सुभाष रतूड़ी ने एक नया जो मंडुवे पर रिसर्च किया उसके लिए हमारी टीम की शुभकामनाएं। उम्मीद है कि सरकार ऐसे युवाओं के प्रोत्साहन के लिए आगे आकर सहयोग करेगी।
टीम यमुनोत्री Express