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उत्तरकाशी बड़ी खबर राज्य उत्तराखंड

वेडिंग इन उत्तराखंड : केदारघाटी में ऊखीमठ बना दूसरा वेडिंग डेस्टिनेशन।

देहरादून/दिनेश शास्त्री। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीती आठ दिसम्बर को देहरादून में हुई ग्लोबल इन्वेस्टर समिट में विदेशों के बजाय देश में ही खास तौर पर उत्तराखंड में विवाह संपन्न करने का आह्वान किया तो उत्तराखंड त्रियुगीनारायण के बाद दूसरा वैदिक वेडिंग डेस्टिनेशन चिह्नित हो गया है। वैसे तो मंदिरों में विवाह संपन्न करवाना अत्यंत शुभ माना जाता रहा है किंतु वांछित सुविधाएं जुटाने की दिक्कत से यह क्रम तीव्र नहीं हो पाया किंतु अब इस दिशा में तेजी से लोग सोचने लगे हैं। अभी तक त्रियुगीनारायण भगवान शिव और पार्वती के विवाह स्थल के रूप में चर्चित है। उसी तरह केदार घाटी में ही रुद्रप्रयाग जिले का तहसील मुख्यालय ऊखीमठ भगवान श्री कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध और परम शिव भक्त वाणासुर की पुत्री उषा का विवाह स्थल है। महाभारत काल के उत्तरार्द्ध में हुए उषा अनिरुद्ध विवाह की वेदिका आज भी विद्यमान है। इसी वेदिका को वेडिंग डेस्टिनेशन बनाने का निश्चय हुआ तो लगे हाथ दो युगलों के विवाह भी यहां होने निश्चित हो गए हैं। इसके लिए पहला पंजीकरण दिल्ली निवासी ने कराया है। श्री बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति के अध्यक्ष अजेंद्र अजय ने इस बात की पुष्टि करते हुए बताया कि इस क्रम में नियमावली भी निर्धारित कर दी गई है।
गौरतलब है कि पिछले दिनों इन्हीं संभावनाओं के दृष्टिगत होटल एसोसिएशन ने ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ में एक वृहद आयोजन भी किया था। ऊखीमठ ही क्यों, इस तरह की पहल अब प्रदेश के अन्य मंदिरों में भी हो सकती है जो यहां की आर्थिकी का ग्रोथ इंजन बन सकती है। लोग भी इस जरूरत को शिद्दत से महसूस करने लगे हैं। यमुनोत्री, गंगोत्री मार्ग पर भी इसकी पर्याप्त संभावना है। जरूरत लोगों के पहल करने भर की है।
वस्तुत: ऊखीमठ तहसील मुख्यालय जरूर है किंतु उत्तर भारत का एकमात्र वैराग्य पीठ होने के बावजूद इसका पर्यटन की दृष्टि से अपेक्षित विकास नहीं हो पाया जबकि इसके ठीक सामने विश्वनाथ मंदिर गुप्तकाशी में केदारनाथ यात्रा के कारण भरपूर विकास हुआ है। सुविधाओं की बात करें तो अब दोनों स्थानों पर नगर पंचायत हैं किंतु ऊखीमठ को वह मुकाम आज तक नहीं मिल पाया था और न ही उस स्तर पर अवस्थापना सुविधाओं का विकास हो पाया था, किंतु हाल के वर्षों में ऊखीमठ भी पूरी तरह कदमताल करता दिख रहा है। यहां उच्च कोटि के होटल से लेकर होम स्टे के साथ बजट टूरिज्म की सभी सुविधाएं उपलब्ध हो गई हैं। वैसे भी यह स्थान पंचकेदार गद्दीस्थल माना जाता है और भगवान केदारनाथ तथा मद्महेश्वर का शीतकालीन पूजा स्थल होने के साथ तृतीय केदार तुंगनाथ के निकट भी है। इसके अलावा पर्यटक ग्राम सारी के निकट होने के साथ प्रसिद्ध देवरिया ताल का आधार शिविर भी है। अब जैसे यह वेडिंग डेस्टिनेशन के रूप में उभर रहा है तो कारोबार और रोजगार की नई संभावनाएं भी ऊखीमठ के द्वार पर दस्तक दे रही हैं। यदि सब कुछ ठीक रहा तो बहुत जल्दी ही ऊखीमठ नगर पर्यटन, तीर्थाटन और कारोबार के क्षेत्र में पूरे जनपद में एक नए गंतव्य के रूप में स्थापित हो सकता है और निश्चित रूप से इन संभावनाओं को पंख लग चुके हैं।
इतिहास में महत्व : –
ऊखीमठ का ऐतिहासिक रूप से बड़ा महत्व है। महाभारत काल के उत्तरार्द्ध से ऊषा महल प्रमाणित है तो शैव मत के जंगम पीठ भी है। इसके साथ ही महारानी अहिल्याबाई होल्कर के योगदान का भी यह प्रमाण प्रस्तुत करने वाला नगर है।
बहुत कम लोग जानते हैं कि समूची केदार घाटी के मंदिरों और धर्मशालाओं को बनाने में अहिल्याबाई होल्कर ने बहुत बड़ा योगदान दिया था। सोमनाथ और काशी में विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार करने के बाद अहिल्याबाई होल्कर ने केदारघाटी के धार्मिक स्थलों को संवारने में अतुलनीय योगदान दिया था। प्रसिद्ध इतिहासकार स्व. एस. पी. नैथानी ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक उत्तराखंड की धार्मिक संस्कृति में अहिल्याबाई होल्कर के योगदान का विस्तृत उल्लेख किया है। वे लिखते हैं कि रुद्रप्रयाग के संगम मंदिर से लेकर तिलवाड़ा के सूर्यप्रयाग, चंद्रापुरी, अगस्त्यमुनि, बसुकेदार, गुप्तकाशी, ऊखीमठ, त्रियुगीनारायण, केदारनाथ, मद्महेश्वर, तुंगनाथ जैसे तमाम मंदिरों का न सिर्फ सौंदर्यीकरण किया बल्कि उन स्थानों पर धर्मशालाओं का निर्माण भी कराया। डॉ. नैथानी लिखते हैं कि उत्तराखंड में बने शिखर शैली के मंदिरों में पहले सभा मंडप नहीं थे। इन सभा मंडपों को अहिल्याबाई होल्कर ने ही बनवाया था। केदारनाथ मंदिर को भव्य बनाने में भी उन्होंने योगदान दिया था। सबसे बड़ी बात यह कि ऊखीमठ और गुप्तकाशी मंदिरों के चारों ओर परकोटे उन्होंने ही बनवाए थे। वे इतनी दूरदृष्टा थी कि इन दोनों स्थानों पर मंदिरों के रखरखाव की व्यवस्था के लिए उन्होंने बाजार तक विकसित किया ताकि इन मंदिरों का खर्च चलाने के लिए कोई दिक्कत न हो। ऊखीमठ और गुप्तकाशी मंदिरों के चारों ओर की संरचना को कोठा भवन कहा जाता रहा है। आज यह स्वरूप विभिन्न आपदाओं के कारण छिन्न भिन्न हो चुका है। इनके साथ ही श्रद्धालुओं के लिए ढींगोस बनाए गए थे। आज उन संरचनाओं को नया आकार देने की व्यवस्था की जा रही है। ऊखीमठ का कोठा भवन तो जर्जर होने लेकर कई वर्षों तक उपेक्षित रहा। अब वहां नया निर्माण किया जा रहा है। नए भवन के लिए की जा रही खुदाई में प्राचीन काल के अनेक अवशेष मिले हैं। लेखक ने पिछले माह भ्रमण के दौरान उन अवशेषों का अवलोकन किया था। उनके कालक्रम को समझने के लिए पुरातात्विक अध्ययन की जरूरत है। आशा की जानी चाहिए कि मंदिर समिति इस दिशा में पहल करेगी।
एक बात और ऊखीमठ में ओंकारेश्वर मंदिर में दर्शन पूजन के बाद तुंगनाथ के लिए पैदल यात्रा होती थी।
पोथी बासा से आगे बनिया कुंड उस समय इस यात्रा मार्ग की प्रमुख चट्टी होती थी। ये बनियाकुंड दुगलबिट्टा के पास में है, जहां आज टेंट की भरमार शुरू हो जाती है। इसी बनियाकुण्ड में अहिल्याबाई होल्कर ने धर्मशाला बनवाई थी। डॉ. नैथानी के अनुसार शताब्दियों तक यह धर्मशाला अस्तित्व में रही। बाद में अपभ्रंश होकर धर्मशाला का नाम इलाबाई हो गया। माना जाता है कि यह संपत्ति बदरीकेदार मंदिर समिति के अधिकार में आई होगी लेकिन आज टेंट कॉलोनी में वह स्थान ढक गया है और बहुत संभव है राजस्व रिकार्ड में किसी और के नाम दर्ज हो गई हो। यह महज संदर्भ के लिए लिखा जा रहा है किंतु विडंबना यह है कि जिस घाटी को महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने ऋणी बनाया, आज उनका नाम लेने को कोई तैयार नहीं दिखता। कारण यह है कि इस बारे में लोगों को न तो बताया गया और न ही लोगों ने पढ़ने की जहमत उठाई।
बताते चलें कि 31 मई 1725 में जन्मी अहिल्याबाई होल्कर ने मराठा सत्ता की बागडोर 1767 में संभाली थी और 1795 तक उन्होंने शासन किया। वे अत्यंत धर्मपरायण और सनातन धर्म की अग्रणी ध्वजवाहकों में एक थी। इसी कारण जब देश में मुगल सत्ता द्वारा हिंदू मंदिरों को तोड़ा जा रहा था, वे विकल्प के रूप में समानांतर मंदिरों को निर्माण कर रही थी और भगवान शिव की परम भक्त होने के कारण उन्होंने केदार घाटी की यात्रा के बाद निर्माण सचल दल भेज कर तमाम स्थानों पर नए निर्माण करवाए। समझा जा सकता है कि केदार घाटी के धार्मिक स्थलों का कायाकल्प अहिल्याबाई होल्कर ने संभवतः 1775 से 1785 के मध्य किया होगा। बहरहाल आज जरूरत उन स्थलों के जीर्णोद्धार की है और उन्हें न्याय की देवी परम शिव भक्त महारानी अहिल्याबाई होल्कर के नाम समर्पित करने की भी है। तभी यहां का समाज उनके ऋण से कुछ हद तक उऋण हो सकता है।
बहरहाल त्रियुगीनारायण के बाद ऊखीमठ दूसरा वेडिंग डेस्टिनेशन बनने जा रहा है तो इस क्षेत्र में विकास की नई पटकथा तैयार हो गई है। ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ के मुख्य अर्चक शिव शंकर लिंग ने लेखक को उषा अनिरुद्ध विवाह वेदिका दिखाते हुए कहा था कि इस महत्वपूर्ण स्थान की ओर लोगों का अब ध्यान जा रहा है तो यह अत्यंत सुखद है। मंदिर समिति के कार्याधिकारी आर. सी. तिवारी बताते हैं कि अभी तक चर्चा से दूर रही उषा अनिरुद्ध विवाह वेदिका के प्रति लोगों का रुझान बढ़ रहा है और मंदिर समिति इस दिशा में विवाह आयोजन के लिए लोगों को यथोचित सहयोग देने के लिए संकल्पित है।
स्थानीय कारोबारी भी मानते हैं कि सुगम और सुविधाजनक होने के कारण निकट भविष्य में यहां नया अध्याय शुरू होने की संभावना है। इससे क्षेत्र की न सिर्फ आर्थिकी मजबूत होगी बल्कि संभावनाओं के नए द्वार भी खुलेंगे। जरूरत सिर्फ इतनी है कि वर्षभर श्रद्धालुओं के स्वागत के लिए स्थानीय लोग खुद को तैयार करें।

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