यमुनोत्री express ब्यूरो
हरिद्वार
मंदिरों में महिलाओं को पूरे वस्त्र पहनकर आने के लिए संत समाज के निर्णय का अंतरराष्ट्रीय संत स्वामी रामभजन वन महाराज ने स्वागत किया है। उन्होंने कहा कि सनातन संस्कृति की पहचान पारंपरिक वेशभूषा में है और किसी को इससे परहेज़ नहीं होना चाहिए। जो लोग संत समाज के निर्णय का विरोध करते हुए इसे महिलाओं का अपमान बता रहे हैं। उन्हें समझना होगा कि सनातन संस्कृति में स्त्री, धन और भोजन को पर्दे में रखने की सलाह दी गई है। वहीं मंदिर आस्था केंद्र है और लोग पवित्र भावना से दर्शन के लिए आते हैं। लोगों की धार्मिक भावना आहत हो, ऐसे कार्य से परहेज़ उचित है । स्वामी रामभजन वन महाराज ने कहा कि परंपरा और संस्कृति के साथ सनातन धर्म की रक्षा के लिए संत समाज ने सदैव आगे बढ़कर कार्य किया है। ऐसे में संत समाज के निर्णय का सभी लोगों को स्वागत करना चाहिए।
श्री तपोनिधि पंचायती अखाड़ा निरंजनी एवं शिव- उपासना धर्मार्थ ट्रस्ट हरिद्वार एवं शिवोपासना संस्थान, डरबन, साउथ अफ्रीका के संस्थापक स्वामी रामभजन वन महाराज को ने कहा कि भारतीय पहनावें धोती- कुर्ता और साड़ी की विशिष्ट पहचान है और पूरी दुनियां के लोग इसे आकर्षण भरी नजरों से देखते हैं।लेकिन पाश्चात्य सभ्यता में रंगे भारत के लोग ही पारंपरिक भारतीय वेशभूषा से परहेज़ कर रहे हैं। आधुनिकता की होड़ में अपनी सभ्यता और संस्कृति से दूर होते जा रहे हैं। ऐसे में संत समाज के निर्णय का स्वागत करते हैं जिसमें मंदिरों में महिलाओं को पूरे वस्त्र पहनकर आने की निर्देश दिया गया है। स्वामी रामभजन वन महाराज ने कहा भारतभूमि को संस्कारों और परंपराओं की जननी कहा गया है। ऋषि मुनियों की तपस्थली के रूप में विख्यात भारतभूमि में देवताओं का भी वास है। लेकिन संस्कारों की कमी के चलते लोग अपनी परंपरा और संस्कृति को भूलते जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि भारतीय वेशभूषा की पूरे विश्व में अपनी विशिष्ट पहचान है और विदेशों में भारतीय पहनावें को अपनाया जा रहा है। ऐसे में वे सभी धर्मावलंबियों से अपील करते हैं कि वह संत समाज के निर्णय का समर्थन करते हुए मंदिरों में पूरे वस्त्र के साथ ही प्रवेश करने का प्रयास करें।