सुनील थपलियाल उत्तरकाशी।
मांगल गीतों के साथ समेश्वर देवता और प्रकृति देवी को आभार प्रकट करने का लोकपर्व फूल संक्रांति (फूलदेई) का पर्व आज से उत्तरकाशी के यमुनाघाटी में शुरू हो गया है। यह त्योहार अपने आप में बेहद अनोखा और महत्वपूर्ण संदेश समाज को देता है। यह बच्चों को प्रकृति प्रेम की शिक्षा बचपन से ही देने का एक आध्यात्मिक पर्व भी है।
उत्तराखंड में आज से फूलदेई का उत्सव शुरू हो गया है। उत्तरकाशी के खरशाली में अनोखे तरीके से इस पर्व को दस गाँव में निवासरत अनुसूचित जाति के 31 परिवार समेश्वर देवता मन्दिर परिसर फेरा लगाने के साथ नृत्य करते है। पौराणिक परम्परा के अनुसार आज के दिन प्रत्येक परिवार के एक सदस्य को देवता परिसर में पहुँचकर मांगल गीत के साथ नृत्य करना पड़ता है। नृत्य के दौरान इष्टदेव समेश्वर से अपनी कुशलक्षेम के साथ पूरे क्षेत्र की कुशलता की कामना की जाती है ।
वही सुबह-सुबह ही बच्चे हाथों में फूलों की टोकरी लेकर लोगों के घरों की देहरी पर फूल डालने की पौराणिक परम्परा है।
चैत्र की संक्रांति से पूरे माह तक बच्चे घरों और मंदिरों की देहरी पर रंग-बिरंगे फूलों को बिखरेंगे। भारतीय सनातन संस्कृति में प्रत्येक संक्रांति को पर्व के रूप में मनाया जाता है, लेकिन चैत्र संक्रांति के दिन अपने ईष्ट देव के साथ प्रकृति संरक्षण को फूल देई का पर्व मनाने की परंपरा है। फूलों का यह पर्व पूरे मास चलेगा। ढ़ोल वादक समिति के अध्यक्ष पुलम दास कहते है कि राजशाही के समय से पूर्व हमारी बिरादरी (वंशज) समेश्वर देवता के प्रांगण में आकर ढोल की थाप पर मांगलिक गीतों की धुन में नृत्य कर देवता को खुश करते है इस मौके पर ग्राम प्रधान यशपाल सिंह,स्थानीय निवासी प्रताप सिंह, महावीर उनियाल,सुरेश, रतनमणि, पंकज सहित सैकड़ों लोग मौजूद थे।
टीम यमुनोत्री Express