Hindi news (हिंदी समाचार) , watch live tv coverages, Latest Khabar, Breaking news in Hindi of India, World, Sports, business, film and Entertainment.
एक्सक्लूसिव बड़ी खबर राजनीति राज्य उत्तराखंड हस्तक्षेप

वरिष्ठ नेताओं को साथ लेकर चलना बड़ी चुनौती, मेंढकों को तोलने में सफल हो पायेंगे धामी?

दिनेश शास्त्री
देहरादून।
मुख्यमंत्री बदलना भाजपा के लिए नई बात नहीं है। जब अंतरिम सरकार में ही दो मुख्यमंत्री बना दिए थे तो प्रचंड बहुमत के रहते तीन तक आंकड़ा पहुंच जाना कोई बड़ी बात नहीं है। तीन मुख्यमंत्री तो तब भी बन गए थे जब 2007 में उत्तराखंड क्रांति दल और निर्दलीय यशपाल बेनाम के सहयोग से खंडूड़ी सरकार बनी थी।
वर्ष 2007 में जोड़ तोड़ कर बनी सरकार को ऐसी नजर लगी कि आज प्रचंड बहुमत की सरकार भी डांवाडोल नजर आ रही है।
नवनियुक्त मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के लिए विधायकों को एकजुट करना मेंढक तोलने जैसा हो गया है। शनिवार को विधायक दल की बैठक से बाहर निकल कर जिस अंदाज में सतपाल महाराज बाहर निकले, उससे साफ झलक गया था कि उन्हें पार्टी का फैसला असहज कर रहा है। शाम होते होते कुछ और नेता कोप भवन में चले गए। बहरहाल पार्टी ने अपने तंत्र को सक्रिय किया। नेता लोग डैमेज कंट्रोल में लगे। खुद धामी को महाराज के घर जाना पड़ा। धन सिंह प्रकट रूप से कुछ न बोले हों लेकिन बॉडी लैंग्वेज ने बहुत कुछ साफ कर दिया। बिशन सिंह चुफाल को मनाया गया, तो वे बोले मेरी कोई बात नहीं, उन दो लोगों को शांत कर लो। यानी हरक सिंह और महाराज। यह सारी कसरत मेंढक तोलने से कम कैसे कही जा सकती है।
नवनियुक्त मुख्यमंत्री पुष्कर धामी निसंदेह युवा होने के साथ पूर्व सैनिक के पुत्र और पार्टी के कर्मठ सिपाही हैं। युवा चेहरे को आगे कर पार्टी ने युवाओं को एक बड़ा संदेश देने की कोशिश की लेकिन वरिष्ठ नेताओं को यह रास नहीं आया। जाहिर है भाजपा ने अगले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर ही धामी पर दांव खेला होगा, लेकिन कई लोगों के अहम को इससे ठेस पहुंचना स्वाभाविक था।
वरिष्ठ पत्रकार निशीथ जोशी कहते हैं कि धामी को सीएम बनाना निसंदेह अच्छा प्रयोग है। युवा ऊर्जा से प्रदेश के तंत्र को गतिशील किया जा सकेगा।
बहरहाल सारे घटनाक्रम को सिलसिलेवार देखें तो धामी के लिए आगे की राह काफी जटिल हो सकती है। इससे उनके कौशल की परीक्षा भी होगी और सबको साधने के हुनर का इम्तिहान भी। बार बार नेतृत्व परिवर्तन से किसी भी प्रदेश को नुकसान ही होता है। अकेले 2021 में प्रदेश को तीन मुख्यमंत्री देखने पड़ रहे हैं तो अंदाजा लगाइए कि नौकरशाही ने सचमुच काम कितने दिन किया होगा। नए नेता के आने के बाद कुछ दिन तक तो नौकरशाह उसका मिजाज भांपते हैं, उसके बाद काम में जुटते हैं और उसी बीच ताश के पत्तों की तरह नौकशाही को फेंटने की जरूरत भी आ खड़ी होती है। ऐसे में अगर कुछ प्रभावित होता है तो वह प्रदेश का विकास और लोगों की अपेक्षाएं होती हैं। जनता ने जिस उम्मीद से सत्ता सौंपी होती है और जब उसकी आकांक्षाओं के अनुरूप काम नही हो पाता तो परिणाम का आकलन करने के लिए ज्यादा दूर नहीं जाना पड़ता। लिहाजा बार बार नेतृत्व परिवर्तन का प्रयोग आलाकमान को बेशक रास आता हो लेकिन उत्तराखंड के लिए तो यह प्रयोग आगे बढ़ने के बजाय पीछे जाने की कोशिश ही लगती है।
अब जबकि धामी प्रदेश के नए सीएम बन गए हैं तो उम्मीद की जानी चाहिए कि वे उम्मीदों को पूरा करेंगे जो पिछले साढ़े चार साल से लंबित हैं। याद करें खंडूड़ी को हटाकर निशंक को सीएम बनाए जाने के बाद कुछ दिन तो लोगों की उम्मीदें परवान चढ़ी थी लेकिन बाद में पार्टी को खंडूड़ी हैं जरूरी का नारा देना पड़ा था। उसके बाद क्या हुआ, बताने की आवश्यकता नहीं है। इस हालत में कहना न होगा कि धामी का राजतिलक युवाओं को तरजीह देने का संदेह जरूर है लेकिन साथ ही 2022 में चुनावी नैया पार लगाने की चुनौती भी है। ऐसे में यह कांटों भरा ताज ही कहा जायेगा। यदि इस परीक्षा में धामी पास हो जाते हैं तो उसके बाद वे निश्चित रूप से बड़े नेता बन कर उभर सकते हैं क्योंकि अभी उन्हें शासन प्रशासन के मामले में अनुभवहीन ठहराया जा सकता है लेकिन 2022 के रण में वे विजेता बने तो राजनीति की स्थापित मान्यताएं टूट भी सकती हैं। इस पर सबकी नजर रहेगी।

टीम यमुनोत्री Express

Related posts

उत्तरकाशी:सुशासन सप्ताह के तहत जिला सभागार में हुआ कार्यशाला का आयोजन

admin

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से मिला चार धाम तीर्थ पुरोहित हक-हकूकधारी महापंचायत समिति का प्रतिनिधिमंडल  

admin

मुख्यमंत्री ने परेड ग्राउंड में निर्माणाधीन बहुउद्देशीय क्रीड़ा भवन के निर्माण कार्य की जांच के डीएम को दिये निर्देश 

admin

You cannot copy content of this page