जय प्रकाश बहुगुणा
बड़कोट/ उत्तरकाशी
दुनियां में यूँ तो अपनी संस्कृति को बचाने के लिए कई लोग प्रयास कर रहे हैं लेकिन यदि कोई 90 वर्ष का बुजुर्ग व्यक्ति इस मुहिम को संजोने में लगा है तो ए एक अद्धभुत प्रयास है।उत्तराखण्ड की पौराणिक संस्कृति को संजोने में लोक गायकों के अलावा ढोल वादकों का भी कम योगदान नहीं है,जो अपने विभिन्न तालों को बजाकर यहाँ की संस्कृति को बखान करते हैं।अपनी पौराणिक मान्यता को संजीदा करते हुए एक 90 वर्षीय बुजुर्ग आज भी अपने ढोल के तालों से लोगों को पौराणिक संस्कृति से परिचय कराते हैं।उत्तरकाशी जनपद की बड़कोट तहसील के ग्राम पंचायत कन्सेरु निवासी नामदास 90 साल की उम्र में जब ढोल पर विभिन्न प्रकार के ताल बजाते हैं तो लोग उनके कायल हो जाते हैं।नामदास बहुत ही आस्थावान भी है।वे अपने इष्टदेव बाबा बौखनाग में बहुत ही विश्वास करते हैं।इनकी उम्र के आज कोई भी ढोलवादक क्षेत्र में मौजूद नहीं है।नामदास अपने ऊपर अपने इष्टदेव का आशीर्वाद मानते हैं।तीन पुत्रों के पिता नामदास आज 90 साल की उम्र में जिस तरह अपनी पौराणिक मान्यता व संस्कृति को संजोने का कार्य कर रहे हैं ओ अपने मे अनुकरणीय है, नामदास की पुत्रवधू गांव में प्रधान भी रह चुकी है।इनके नाती बड़कोट महाविद्यालय में छात्र संघ अध्यक्ष भी रहे।इनकी अदभुत प्रतिभा व पौराणिक संस्कृति को संजोने के प्रयासों की क्षेत्रीय लोग प्रशंसा करते हैं।