सुनील थपलियाल
हिमालय के केदारखण्ड में अवस्थित यमुनोत्री तीर्थ धाम का चारो धामों में विशिष्ट स्थान है। 10 हजार 617 फुट की उंचाई पर स्थित यमुनोत्री धाम मे सूर्य पुत्री यमुना की जलधारा एक पर्वतमाला को दूसरे से पृथक करती है।
यमुनोत्री हिमालय का वह धाम है जहां पहंचने के लिए अटूट श्रद्वा का भाव होना जरूरी है। भावना का तुफान दुर्गम व अगम्य को सुगम बना देता है। यमुनोत्री घाटी प्राकृतिक सुशमा तथा सुन्दरता के लिए विषेश प्रसिद्व है जो एक बार यहां आता है वह बार बार यहां आने के लिए उत्कंठित रहता है। कहते है कि यमुना के पिता सूर्य देव की दो पत्नीयां थी सन्दया और छाया जिसमें से एक पत्नी से यमुना और यमराज देव थे और दूसरी से शनिदेव । और यमराज और शनिदेव ने मां यमुना को बचन दिया हुआ कि जो भी तेरे जल से स्नान कर पूजा अर्चना करेगा उसे यम यातना और शनि की साढ़ेसाती से मुक्ति मिलेगी और इसमें विशेष यह भी माना जाता है कि जो भी श्रद्वालु यमुनोत्री धाम में खास तौर पर अक्षय तृतीया और यमद्वितीया(भय्या दूज) पर्व पर आकर यमुना के जल से स्नान करता है उस पर शनि देव की कृपा और यमयात्नाओ से मुक्ति मिलती है।
उत्तराखण्ड के प्रथम धाम के इतिहास के अनुसार
यमुनोत्री मन्दिर का निर्माण टिहरी नरेश प्रताप शाह ने विक्रम संवत 1919 में किया था । उन्होने जयपुर में काले संगमरमर की यमुनादेवी की मूर्ति बनवायी और उसे यमुनोत्री में प्रतिश्ठापित किया । यमुनोत्री मन्दिर के तत्कालीन पुजारी थे खरसाली गांव के भारद्वाज गोत्रिय ब्राहमण बड़देव उनियाल । उन्हे राजा ने एक पत्र लिखकर दिया था जिसमें उनसे अनुरोध किया गया था कि वे यमुनोत्री के मन्दिर ,खरसाली के सोमेश्वर देवता के मन्दिर सहित बीफ यानी नारायणपुरी ग्राम के नारायण देवता की पूजा किया करें और इन मन्दिरो को सुपूज्य रखें। यह पत्र मूलरूप से अब भी उक्त पुजारी के वंशज खरसाली ग्राम निवासी पंडित विशम्बर दत्त उनियाल के यहां है।
खरसाली ग्राम मंे थुनेर की लकड़ी का एक खम्भा आज भी विघमान है, जिसमें विक्रम संवत 1808 अकिंत है । वहां इस लकड़ी का बना हुआ एक प्राचीन मन्दिर भी है। इससे अनुमान होता है कि यमुनोत्री मार्ग पर पड़ने वाला उत्तरकाशी जनपद का यह अन्तिम गांव जिसकी जनसख्या 2000 के करीब है लगभग 300 वर्ष पुराना है। इस गांव का मुख्य संबध यमुनोत्री मन्दिर से है यह यमुनोत्री धाम के पुजारियांे का गांव है, यहां के लोग खेती तथा पशुपालन के साथ साथ यमुनोत्री की पूजा अर्चना आदि (पण्डागीरी) से अपनी आजीविका चलाते है। कहा जाता है कि टिहरी के महाराजा कीर्ति शाह यमुनोत्री गये तो उन्होने अपने पिता महाराजा प्रताप शाह द्वारा खरसाली ग्राम के पुजारी प्रदत्त आदेश का समर्थन करते हुए निंरतर यहां के मन्दिरों की पूजा करते रहने का अनुरोध दोहराया । उसके बाद उनके पुत्र महाराजा नरेन्द्र शाह ने मन्दिर की आय में से ग्यारह रूपये गुंठ के इस ग्राम के पण्डो के लिए मंजूर किये थे। दूसरे शब्दो में महाराजा को दिये जाने वाले भूराजस्व मेें ग्यारह रूपये में यमुनोत्री की पूजा करने के कारण माफ थे। महाराजा ने फुलचट्टी में एक संस्कृत विघालय की भी स्थापना करवायी जिससे कि यहां से संस्कृत ,ज्योतिष ,धार्मिक कर्मकाण्ड आदि के विद्वान निकले और मन्दिर की पूजा अर्चना सुचारू रूप से सम्पन्न कर सके। स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात संवत 2010 विक्रमी से प्रादेशिक सरकार ने इस मन्दिर का प्रंबध एक मन्दिर समिति को सौपं दिया , तब से निंरतर इस मन्दिर की देखरेख व व्यवस्था यमुनोत्री मन्दिर समिति द्वारा की जाती है । परगनाधिकारी (एसडीएम ) बड़कोट इस समिति के पदेन अध्यक्ष है। समिति के सदस्यो की टोली को मन्दिर के खुलने के दिनो में दस दस दिनों के लिए मन्दिर की व्यवस्था का कार्य सौंपा जाता है। मन्दिर में चढ़ावे के लिए समिति ने कर्मचारी रखे है जो चढ़ावा देने वाले श्रद्वालु को रसीद देते है।
मन्दिर से प्राप्त होने वाली आय से मन्दिर का जीर्णाद्वार व यात्रा विश्राम भवनो का निर्माण इत्यादि कार्य सम्पन्न होता है। मन्दिर के नित्य प्रति आठ आदमी भोजन प्राप्त करते है। भले ही पिछले साल से भण्डारा दिये जाने की सुविधा भी समिति ने की हुई है। मन्दिर का पुजारी कोई एक व्यक्ति न होकर खरसाली ग्राम के वे पण्डे उनियाल जाति के ब्रहामण होते है जो दस दस दिनों की बारी से पूजा अर्चना करते है। दक्षिणा पण्डों की निजी आय होती है। यमुनोत्री मन्दिर के कपाट प्रतिवर्ष बैशाखी शुक्ल पक्ष में अक्षय तृतीया तिथि को खुलते है। और दीपावली के (कार्तिक मास ) यमद्वितीया यानी भय्या दूज तिथि को बंद होते है। इसके बाद छः माह के लिए पण्डा लोग यमुना जी रजत आभुशणों सहित भोग उत्सव मूर्ति को खरसाली गांव ले आते है। यमुना गंगा यमराज ,कृष्ण की मूर्तियों को संस्थापित कर पूजा अर्चना करते है। खरसाली मे मां यमुना का विशाल काया मन्दिर बना है जो भविष्य में सुरक्षा के लिहाज से महत्वपूर्ण भी है। यमुनोत्री धाम के चारो ओर का नजारा किसी स्वर्ग से कम नही , चारेा ओर उंची उंची चोटियां , हरे भरे वृक्ष , दूध से बहते झरने , रंग विरेगंे फुल और मन मोहक बरफीली चोटियंा एक बार जो देखता है वह धार्मिक स्थल यमुनोत्री के अलावा कुदरत का लुप्त भी उठाता है। इसलिए यमुनोत्री धाम आकर मां के दर्शन के साथ प्राकृतिक सुन्दरता का लुफत भी ले।
टीम यमुनोत्री Express